क्या चलेगा वंश-
मानव के पीछे बैठा दानव
धूल उड़ा रहा,
तीर तलवार चला रहा,
मानवता को भटका रहा,
झूठी थाली में परोस कर
रुढिवादी परम्पराओं को,
झूठे सपने दिखा रहा-
इक दिन तो
भेद खुलेगा,
बात्ती बिन दिया
कैसे जलेगा-
राज़ सब जान चुके हैं,
लिंग भेद करने वालों को
पहचान चुके हैं,
कई हाथ अब
भेद भुला कर
थाली बजाएंगे,
जो अभी सो रहे हैं
उन्हें जगाएंगे,
सब को समझाएंगे कि,
दीपक का अस्तित्व
बात्ती से है-
बात्ती से दीप जलेगा
अंधियारा दूर भगेगा
अंधियारा दूर भगेगा
घर होगा रोशन
और वंश चलेगा।॑॑॑॑॑॑॑॑॑
नरेश भाई काफी अरसे बाद फेसबुक के ज़रिये
ReplyDeleteफेस २ फेस हुए .तेज की सेवा करने का मुझे भी
अवसर मिला था और आप से भी .
ब्लॉग पर कुछ रचनाएँ देखी समझी
बहुत अच्छी लगी .और पढकर लिखूंगा .