मेरे घर के आंगन में
खौफ की खेती उग आई है
मैनें तो शांति के बीज बोए थे.
सुरक्षित छत की तलाश करता हूं
तो लगता है
सिर से आसमान ही हट गया है
फर्श पर फैली बेर की गुठलियां
पैरों के तलवों में चुभती हैं.
चारदीवारी लांघ कर
उग्रवाद
जबरन
मेरे शांत घर में घुस आता है.
मेरी चौखट पर
हर रोज़ का ताज़ा हवा का झोंका
तूफान बन कर
मेरे शांति निकेतन पर
अनाधिकृत रूप से
कबिज़ हो जाता है.
चूल्हे पर चढी खाली हांडी
और
प्रतीक्षा में बैठे
पिचके हुए नन्हे पेट
आश्वासनों की बासी रोटी से
नहीं बहलते
पत्तलों में परोसा स्वार्थ
उनकी भूख को शांत नही कर पाता,
उन्हें चाहिए बस
शिक्षा
उदरपूर्ति
और सुरक्षित छत्त
कोई तो समझे इनकी भाषा
आकांक्षा और आवश्यकता को.
मेरी ज़मीन को खरपतवर नहीं
अन्न की फसल चहिए
मेरे घर को
उग्रवाद की नहीं
शिक्षा दीक्षा की
सुरक्षित छत्त चाहिए।
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