Saturday, January 15, 2011

॑॑॑मेरी पहचान एक नम्बर ॑॑

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मेरा शहर बहुत खूबसूरत था,
इस शहर में हर शख्स की
एक पहचान थी,
हर शख्श
एक दूसरे को
जानता पहचानता था,
सब एक दूसरे के
मान सम्मान
का अर्थ भी जानते थे-


लेकिन अब मेरा ये शहर
मशीनों के हवाले
कर दिया गया है-
अब मेरी और मेरे शहर के
लोगों की पहचान
नम्बरों के चक्रव्यूह में
खो गई है-


मैं और मेरा ये शहर
नम्बरों से पहचाना जाता है,
मेरे शहर को ढूंढने के लिए
एक पिन नम्बर है
तो मुझे पहचानने के लिए
पैन नम्बर,
मुझे ढूंढने के लिए
मकान नम्बर
मेरे मोहल्ले को
ढूंढने के लिए
वार्ड नम्बर,
सैक्टर नम्बर
तय कर दिये हैं-


अब बैंक में जाता हूं ,
तो बैंक का कम्प्यूटर भी
मुझे मेरे खाता नम्बर से ही जानता है,
पहचान वाले
बैंक कर्मचारी भी
मेरी पहचान का मिलान
कम्प्यूटर में दर्ज
नम्बर से ही करते हैं,
पहचान होगी तो भुगतान होगा-


गाड़ी में सीट नम्बर,
टिकट नम्बर,
अस्पताल में,
बैड नम्बर,
यहां तक कि
मेरी पहचान
मेरे फोन नम्बर से होने लगी है-


बदनसीबी का आलम देखिए
अब मुझे,
बहुउद्देशीय नम्बर
दिया जाएगा,
हर जगह
वही नम्बर मेरी पहचान होगा,
चाहे मैं जिन्दा रहूं
या मर जाऊं।
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