Thursday, September 26, 2013

जिन्दगी पतंग

उम्मीदों की डोर से 
उड़ रही जिन्दगी की पतंग.
किसी ने छोड़ा मझधार में
कोई आज भी है संग.j

Friday, August 30, 2013

खुशबू का सफ़र

अब निकला है एक बगूला खुशी का,
निराशा के जंगल से,
मिशन पर निकला है एक निडर पर्वतारोही,
भ्रष्टाचार के अमंगल से,
बदलने वक्त को,
गन्दे रक्त को,
अंधेरे गुनाह के दागों को,
उजाले की धूप से धोने की जुगत,
अब भी उसके ह्रदय में संचित है,
फूलो की खुशबू की तरह...

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Friday, June 21, 2013

स्वार्थ की कुल्हाड़ी

प्रकृति से छेड़छाड़,
स्वार्थ की कुल्हाड़ी से,
परम्पराओं का कटान,
कर्म को त्याग,
धर्म के पीछे दौड़ना,
अपनी चाल में चल रही,
नदियों को मोड़ना,
साफ़ सुथरे पानी में,
अपने जिस्म का कचरा छोड़ना-
अपने पाप के बोझे को,
जिस्म पर लाद कर,
धरती का सीना मरोड़ना,
आपाधापी के बवंडर में
फिर विस्फोट तो होगा ही...
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Thursday, June 6, 2013

ठोकरों ने सिखाया


ठोकरों ने सिखाया,
चलने का तरीका बताया.
बस यूं कट गया, 
जिन्दगी का सफ़र बकाया.
भटके हैं बहुत,
सीखें हैं बहुत,
जब मिला ना कोई,
तो तेरा ही बुत बनाया
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Friday, May 31, 2013

खेल नियति का

अज़ब है नियति का खेल,

कभी फ़ुर्सत नहीं,

तो कभी उदासी-एकाकी का मेल,

एक घड़ी सौ बरसों की लगी कभी,

तो कभी बरस बीत गए एक घड़ी में....
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Wednesday, January 30, 2013

शहर जवान हो गया....



शहर अब जवान हो गया है
यहां अब सूरज जल्दी छिपता है
क्यों कि
यहां की इमारतें
काफी बड़ी हो गई हैं

शहर की इस आलीशान कालोनी में
जब मैं पैदल चलता हूं
तो गली के कुत्ते
दुम हिलाते हुए
मेरे साथ-साथ चलते हैं
क्यों कि वे मुझे
अब पहचानने लगे हैं
गली में कोई इन्सान नज़र नहीं आता
यह जान कर वे
मेरा अभिनन्दन करते हैं

इस जवान शहर में
मुझे अपनी बूढी साईकिल याद आ गई
जिसकी सीट अब मुझे
और ऊंची करनी पड़ेगी
शायद...