बस में नहीं किसी का आना,
किसी का जाना
मग़र
इन्साफ़ के तराजू में
क्या तुलता है
इन्सान को ही
समझ ना आया
अब तलक
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सफ़र के बाद
जब मैं
अपने घर
सुरक्षित पहुंच जाता हूं
तो
भगवान का शुक्रिया अदा करता हूं
"कि मुझे तो बस
बचाने वाला तो तूं ही है"
वरना तो
सड़क के चप्पे-चप्पे पे
मौत खड़ी
इन्तज़ार करती रहती है
हर पल.....
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ये जानता हर शख्स
कि देने वाला मेरा रब ही है
मगर उम्मीदों का चराग
किसी और की लौ से जलाने की उम्मीद
ना जाने क्यों बाध लेता है
और
जब उम्मीद टूटते ही
बिखर जाते हैं सपने