Thursday, December 18, 2014

बस में नहीं

बस में नहीं किसी का आना,
किसी का जाना
मग़र 
इन्साफ़ के तराजू में
क्या तुलता है
इन्सान को ही 
समझ ना आया
अब तलक
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Monday, November 3, 2014

ये सफ़र है जिन्दगी का


सफ़र के बाद 
जब मैं 
अपने घर 
सुरक्षित पहुंच जाता हूं
तो
भगवान का शुक्रिया अदा करता हूं
"कि मुझे तो बस
बचाने वाला तो तूं ही है"
वरना तो 
सड़क के चप्पे-चप्पे पे
मौत खड़ी 
इन्तज़ार करती रहती है
हर पल.....
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Saturday, September 27, 2014

बिखरते सपने

ये जानता हर शख्स
कि देने वाला मेरा रब ही है
मगर उम्मीदों का चराग
किसी और की लौ से जलाने की उम्मीद
ना जाने क्यों बाध लेता है
और
जब उम्मीद टूटते ही
बिखर जाते हैं सपने