सर्द सुबह,
नई सी लगी,
मगर चेहरे पे नक़ाब,
पुरानी सी लगी,
घनी कोहरे की चादर,
पहले से कुछ मैली सी लगी,
शायद वक्त के साथ,
घूमते घूमते,
घिस गई है,
जीवन की रस्सी,
कमजोर होकर,
कमजोर कड़ी की तरह,
बस टूटने के कगार पर है,
कल की सुबह
जब मैंने,
जिन्दगी को,
संघर्ष का दूसरा रूप,
मान लिया,
तब देखा कि,
हर मुश्किल,
आसान हो गई-