Wednesday, November 7, 2012

उम्र का जोश


उम्र का जोश और 
उम्र की थकान,
अमीर को ऎश और 
गरीब को मकान,
आने जाने का रास्ता एक है,
मग़र,
सब का एक ही मकाम-
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Thursday, October 18, 2012

ममता


एक ममता ने
पत्थर बन,
अपनी नवजात बेटी को,
किसी पत्थर पर छोड़ दिया,
न जाने क्यों,
अपने लगाव का गला घोंट कर--
और एक मां ने जब 
उसके फूल से बदन पर,
पत्थर से जख़्म देखे तो रो पड़ी-
अब उस मां की जिन्दगी के आगंन में,
हर रोज  खिलता है,
वो फूल
सदाबहार फूल की तरहा--
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Thursday, August 9, 2012

क्या चाहिए


कुपोषित बच्चों, 
कुपोषित महिलाओं 
को चाहिए 
पोषण,

वृद्धों को चाहिए 
आश्रय,
अनाथ को चाहिए
सहारे की छत्त
और 
गरीब को चाहिए,
रोटी, कपड़ा और मकान.
आम आदमी को चाहिए,
डायन मंहगाई से निज़ात,

लेकिन हुकमरान,
उन्हें दे रहे हैं
मोबाईल फोन,
बात करने के लिए,
मंहगाई से,
सहारे की छत्त से,
और 
बीमारी की लत से..

Tuesday, August 7, 2012

मौसम की शरारत


आज फिर जिस्म को धूप ने छेड़ा है
आज फिर मौसम ने शरारत की है
सड़क को भी पता चल गया है
कि मैं नंगे सिर और नंगे पांव ही
जमीं पर चल रहा हूं....
मग़र जमीं पर तो चल रहा हूं
खुले आसमां के नीचे
मेरे पांव जमीं पर तो हैं..
किसी की अरमानों के सीने पर नहीं.
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Friday, July 20, 2012

जिन्दगी क्या ?


जिन्दगी कभी नहीं कहती,
अपने गले में फ़न्दा डाल कर,
मुझे ऊंचा उठाओ-


जिदगी तो बस,
इक सयानी गीली मिट्टी सी है,
जिसे जहां रखो,
जिस सांचे में ढालो,
वहीं रम जाएगी, 
जम जाएगी।
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Saturday, March 24, 2012

काश मैं सांझा होता


काश मै सांझा चूल्हा होता
एक ही तवे पे बनती रोटी
सांझी थाली में
दिल सांझा
मन सांझा
सारा जग सांझा होता
हर दिन नया नवेला होता
आंगन में गूंजे किलकारी
संवादों का रेला होता
हर घर में मेला होता
इस मेले में
न कई गुम होता
न कोप भवन में सोता
न संवादहीनता-अनबोला होता
और न किसी बूढे-बुढिया का दिल रोता
काश मै सांझा चूल्हा होता..
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Friday, March 23, 2012

कोई रिश्ता बुन लिया

खनकती आवाज उसकी,
मेरे कानों ने जब सुनी,
यूं लगा जैसे
आसमां ने झुक कर,
धरती को चुम्बन किया,
यूं लगा जैसे, 
समन्दर किनारे,
हजारों सीपियां ने,
कोई रिश्ता बुन लिया,
यूं लगा जैसे,
आंखों की मीनारों ने,
दिल की इमारत को चुन लिया,
यूं लगा जैसे,
आंखों की बरसात ने,
जिन्दगी के सूखे दरख़्तों की, 
पुकार को सुन लिया-
और जब पर्दे हटा के देखा,
तो नई सुबह का नया सूरज,
निकल आया, 
नए जन्म की तरह-
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Sunday, February 12, 2012

काश वह परिन्दा होता.


भोला आज फिर
अपने घर की छत पर 
पतंग उड़ा रहा था
उसकी पतंग
नीले आकाश में
परिन्दे की तरह उड़ रही थी
एक दूसरी पतंग से पेंच लड़ा..
प्रतिद्वन्द्वी की पतंग कट गई
भोला के मुख से 
अनायास ही निकला
"वोई काटा हे"
फिर दूसरी पतंग से पेंच लड़ा,
इस बार 
भोला की पतंग कट कर,
आसमान में लहराती हुई
उससे दूर जाने लगी,
भोला एकबारगी जड़ हो गया
दूसरे पल वह घर की छत से नीचे उतरा
गली गली घूमा
अपनी कटी पतंग को ढूंढा
लेकिन जब उसे कहीं भी 
अपनी वह कटी पतंग नहीं मिली
तो वह निराश 
घर लौटते हुए 
सोच रहा था
काश वह परिन्दा होता
और अपनी कटी पतंग को
आसमान से ही ढूंढ लेता
जमीन पर लूटने वाले हाथों में
जाने से पहले
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Saturday, February 4, 2012

दिल की बातें


तुम्हारा दिल,
जब करता है बातें,
मेरे दिल से- 
तो सांसे भी,
पल भर, 
अपनी धड़कानों को,
रोक कर,
सुनती हैं बातें,
मेरे और तेरे दिल की-