Saturday, March 24, 2012

काश मैं सांझा होता


काश मै सांझा चूल्हा होता
एक ही तवे पे बनती रोटी
सांझी थाली में
दिल सांझा
मन सांझा
सारा जग सांझा होता
हर दिन नया नवेला होता
आंगन में गूंजे किलकारी
संवादों का रेला होता
हर घर में मेला होता
इस मेले में
न कई गुम होता
न कोप भवन में सोता
न संवादहीनता-अनबोला होता
और न किसी बूढे-बुढिया का दिल रोता
काश मै सांझा चूल्हा होता..
*****************************

No comments:

Post a Comment