Friday, March 4, 2011

सुख़-दुख़ का सफ़र


सुख-दुख का सफ़र
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मैं आज भी
जीवन के सफ़ेद पन्नों पर
लिखी गई उस शोध को
पढ कर
यह समझ नहीं पाया हूं
कि चाहत के अंकुर से
उभरने वाले पौधे पर
कान्टे क्यों उग आते हैं
परिणति को बिन जाने
आसक्त पांव
बरबस ही बेखौफ
कान्टों की उस पगडंडी पर
 क्यों चलने लगते हैं

इतिहास के कई
ज़ाल बुनकर भी
इस शोधनुमा मछली को
आजतक बांध न पाया
समझ न पाया

शोध के अंतिम छोर तक
एक ही इबारत लिखी हुई थी
जहां फूल है
वहां कांटे भी है,

जहां सुख है 
वहां दर्द है, दुख है, वेदना है
जिन्दगी का ये सफ़र 
एक दूसरे के साथ जुड़ा हुआ है
इस लिए कि
एक के बिना 
दूसरे का अस्तित्व गौण 
हो जाता है।
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तुम मेरे अपने हो..


तुम हो 
तुम्हारा मन है
तुम अपने मन को
अपनी सुविधा के मुताबिक
पतंग की तरह
जिधर चाहे मोड़ लेते हो-

लेकिन मैंने तो
अपने आसमान को
तुम्हारी पतंग के लिए
खाली छोड़ दिया है
तुम जब जी चाहे
इसमें अपनी पतंग को
उड़ाओ या समेट लो-

क्यों की मैं तो 
खुला आसमान हूं
और तुम हवा के साथ 
उड़ने वाला बादल
जो मेरी गोद में रह कर
धरती को देता है 
जीवन की धारा-

अतीत की कड़वी यादें
मुझे सूली की सज़ा देती हैं
लेकिन फिर भी
तुम मेरे अपने हो
अपनेपन के अहसास से ही
मैं जिन्दा हूं-

करवट बदलता हूं
इस कदर सम्भल कर कि
तुम्हारे कोमल पन्खों को
खरोंच ना पहुंचे 
भले ही तुम
मेरे आशि्याने को
अपने पैने पंजो से 
ज़ख्मी कर डालो
क्यों कि तुम
मेरे अपने हो। 
॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑

Wednesday, March 2, 2011

तीन क्षणिकाएं


वर्तमान राजनीति
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एक नग्न मूर्ती
मंच पर चिल्ला रही है
पांडाल में बैठी 
जनता से
फ़रमा रही है
अश्लीलता , नग्नता
के खिलाफ 
पाठ पढा रही है।
॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑
समाजवाद
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टूटी टांग का कुत्ता
एवरेस्ट की ओर
झांक रहा है-

 भंडार भरे हैं
 फिर भी
आम आदमी
धूल फांक रहा है।

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सरकारी बजट
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एक ऎसा मीठा फल
जिसे जनता के हित के लिए
पकाया गया
और उसे
सरकारी कर्मचरी
अधिकारी और
जनप्रतिनिधि
नोच नोच कर
खाते हैं।
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