मौसम की शरारत
आज फिर जिस्म को धूप ने छेड़ा है
आज फिर मौसम ने शरारत की है
सड़क को भी पता चल गया है
कि मैं नंगे सिर और नंगे पांव ही
जमीं पर चल रहा हूं....
मग़र जमीं पर तो चल रहा हूं
खुले आसमां के नीचे
मेरे पांव जमीं पर तो हैं..
किसी की अरमानों के सीने पर नहीं.
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