Thursday, June 6, 2013

ठोकरों ने सिखाया


ठोकरों ने सिखाया,
चलने का तरीका बताया.
बस यूं कट गया, 
जिन्दगी का सफ़र बकाया.
भटके हैं बहुत,
सीखें हैं बहुत,
जब मिला ना कोई,
तो तेरा ही बुत बनाया
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Friday, May 31, 2013

खेल नियति का

अज़ब है नियति का खेल,

कभी फ़ुर्सत नहीं,

तो कभी उदासी-एकाकी का मेल,

एक घड़ी सौ बरसों की लगी कभी,

तो कभी बरस बीत गए एक घड़ी में....
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Wednesday, January 30, 2013

शहर जवान हो गया....



शहर अब जवान हो गया है
यहां अब सूरज जल्दी छिपता है
क्यों कि
यहां की इमारतें
काफी बड़ी हो गई हैं

शहर की इस आलीशान कालोनी में
जब मैं पैदल चलता हूं
तो गली के कुत्ते
दुम हिलाते हुए
मेरे साथ-साथ चलते हैं
क्यों कि वे मुझे
अब पहचानने लगे हैं
गली में कोई इन्सान नज़र नहीं आता
यह जान कर वे
मेरा अभिनन्दन करते हैं

इस जवान शहर में
मुझे अपनी बूढी साईकिल याद आ गई
जिसकी सीट अब मुझे
और ऊंची करनी पड़ेगी
शायद...

Wednesday, November 7, 2012

उम्र का जोश


उम्र का जोश और 
उम्र की थकान,
अमीर को ऎश और 
गरीब को मकान,
आने जाने का रास्ता एक है,
मग़र,
सब का एक ही मकाम-
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Thursday, October 18, 2012

ममता


एक ममता ने
पत्थर बन,
अपनी नवजात बेटी को,
किसी पत्थर पर छोड़ दिया,
न जाने क्यों,
अपने लगाव का गला घोंट कर--
और एक मां ने जब 
उसके फूल से बदन पर,
पत्थर से जख़्म देखे तो रो पड़ी-
अब उस मां की जिन्दगी के आगंन में,
हर रोज  खिलता है,
वो फूल
सदाबहार फूल की तरहा--
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Thursday, August 9, 2012

क्या चाहिए


कुपोषित बच्चों, 
कुपोषित महिलाओं 
को चाहिए 
पोषण,

वृद्धों को चाहिए 
आश्रय,
अनाथ को चाहिए
सहारे की छत्त
और 
गरीब को चाहिए,
रोटी, कपड़ा और मकान.
आम आदमी को चाहिए,
डायन मंहगाई से निज़ात,

लेकिन हुकमरान,
उन्हें दे रहे हैं
मोबाईल फोन,
बात करने के लिए,
मंहगाई से,
सहारे की छत्त से,
और 
बीमारी की लत से..

Tuesday, August 7, 2012

मौसम की शरारत


आज फिर जिस्म को धूप ने छेड़ा है
आज फिर मौसम ने शरारत की है
सड़क को भी पता चल गया है
कि मैं नंगे सिर और नंगे पांव ही
जमीं पर चल रहा हूं....
मग़र जमीं पर तो चल रहा हूं
खुले आसमां के नीचे
मेरे पांव जमीं पर तो हैं..
किसी की अरमानों के सीने पर नहीं.
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