Wednesday, November 7, 2012
Thursday, October 18, 2012
Thursday, August 9, 2012
Tuesday, August 7, 2012
Friday, July 20, 2012
Saturday, March 24, 2012
काश मैं सांझा होता
काश मै सांझा चूल्हा होता
एक ही तवे पे बनती रोटी
सांझी थाली में
दिल सांझा
मन सांझा
सारा जग सांझा होता
हर दिन नया नवेला होता
आंगन में गूंजे किलकारी
संवादों का रेला होता
हर घर में मेला होता
इस मेले में
न कई गुम होता
न कोप भवन में सोता
न संवादहीनता-अनबोला होता
और न किसी बूढे-बुढिया का दिल रोता
काश मै सांझा चूल्हा होता..
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Friday, March 23, 2012
कोई रिश्ता बुन लिया
मेरे कानों ने जब सुनी,
यूं लगा जैसे
आसमां ने झुक कर,
धरती को चुम्बन किया,
यूं लगा जैसे,
समन्दर किनारे,
हजारों सीपियां ने,
कोई रिश्ता बुन लिया,
यूं लगा जैसे,
आंखों की मीनारों ने,
दिल की इमारत को चुन लिया,
यूं लगा जैसे,
आंखों की बरसात ने,
जिन्दगी के सूखे दरख़्तों की,
पुकार को सुन लिया-
और जब पर्दे हटा के देखा,
तो नई सुबह का नया सूरज,
निकल आया,
नए जन्म की तरह-
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Sunday, February 12, 2012
काश वह परिन्दा होता.
भोला आज फिर
अपने घर की छत पर
पतंग उड़ा रहा था
उसकी पतंग
नीले आकाश में
परिन्दे की तरह उड़ रही थी
एक दूसरी पतंग से पेंच लड़ा..
प्रतिद्वन्द्वी की पतंग कट गई
भोला के मुख से
अनायास ही निकला
"वोई काटा हे"
फिर दूसरी पतंग से पेंच लड़ा,
इस बार
भोला की पतंग कट कर,
आसमान में लहराती हुई
उससे दूर जाने लगी,
भोला एकबारगी जड़ हो गया
दूसरे पल वह घर की छत से नीचे उतरा
गली गली घूमा
अपनी कटी पतंग को ढूंढा
लेकिन जब उसे कहीं भी
अपनी वह कटी पतंग नहीं मिली
तो वह निराश
घर लौटते हुए
सोच रहा था
काश वह परिन्दा होता
और अपनी कटी पतंग को
आसमान से ही ढूंढ लेता
जमीन पर लूटने वाले हाथों में
जाने से पहले
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Saturday, February 4, 2012
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