मेरे लिए,
इक हसीन आशियाना,
मग़र स्वार्थ के दानव ने,
इसे दोहन की
आग के हवाले कर दिया-
स्वार्थ के दिमाग़ से
निकले धुंए से,
आसमां बीमार हो गया,
धरती को रोग़ लग गया-
कुल्हाड़ी उस डाली पर चली,
जिस पर इन्सान बैठा था,
उसी घर को आग लगी,
जिसमें मानव रहता था-
बिना डाली के फूल,
खिलाने की कोशिश,
पतझड़ के बिना,
बहार लाने की तमन्ना,
और बिना पंख,
परिन्दे को
उड़ाने के प्रयास ने
फुकुशिमा को पैदा किया-
स्वार्थ के खरपतवार को,
यदि नष्ट नहीं किया गया तो,
पैदा होंगे अनगिनत फुकुशिमा-
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