Thursday, November 11, 2010

स्वर्ग छिन गया

दिल की धड़कन रुक जाए,
तब भी मेरे आंगन में,
मातम की दरी नहीं बिछेगी.-
मेरी आंखों की मुंडेर पर तो,
अब भी तुम्हारी ,
प्रतीक्षा की चिमनी जल रही है-
आसमान पर उठने वाले ,
धुंए की लकीर से,
जो गीत लिखे गए हैं,
वे जेब पर टंगी,
आंखों में धंस कर भी,
किसी स्वर्ण फूल की तरह,
स्वर्ग की बगिया में ,
लहलहा रहे हैं-
आसमान पर,
फैली हुई,
चांदनी के माथे पर,
गोल नन्ही कंवारी बिंदिया,
कितने ही  श्रंगार करती है,
मेरे लिए-
फिर इन्द्रधनुषी रंग,
एक उत्सव की,
छठा बिखेरते हैं-
तब यकायक, 
आसमान पीला होकर,
नई भौर को जन्म देता है,
सूरज की लौ से ,
आंखों से पलकें ,
ह्ट जाती हैं,
तब मेरा स्वर्ग छिन जाता है।


        

2 comments:

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