Saturday, November 13, 2010

तुम लौट आओ


मन के किवाड़ों पर, 
कई उत्सुक हाथ
दस्तक दे रहे हैं,
पुकार रहे हैं,
बीते वक्त को-

तुम लौट आओ,
अपने साथ लेकर आओ,
वो सादा जीवन,
मासूम कदमों से चलना,
ठहर कर बातें करना,
पेड़ों की हर शाख पे बैठ कर,
गुनगुनाना, हठखेलियां करना,
और फिर रात को, 
दादी मां की कहानियां ,
सुन कर सो जाना-

हर शख्श की पहचान थी,
इक दूजे से
प्यार मोहब्बत एक समान थी-

तुम लौट आओ, 
अपने साथ लेकर,
वही चांद वही सितारे,
वही गलियां वही चौबारे-

तुम नहीं जानते,
अब तो,
मेरा अस्तित्व,
अदालत के चक्रव्यूह में फंसा है,
थोथी ज़मीन में धंसा है-

मकान के पिछवाड़े,
अपने दाग़ को धोते,
चांद  भी बुड्ढा गया है,
सितारे,
पुच्छल तारे की तरह,
घायल ज़मीं पर आ गिरे हैं,
खूबसूरत गरीबी,
बुरी नज़र के दंश से घायल है,
गलियां , चौबारे
शब्द की, 
बदनामी झेल रहे हैं-

ए बीते वक्त 
तुम लौट आओ,
किसी रूप में...
किसी अवतार में.



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