Saturday, November 27, 2010

मैं और मेरी कविता

     

 मैं और मेरी कविता 
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  मैं और मेरी कविता
  दोनों सपने देखते हैं,
  हर रोज़,
  हम
  एक दूसरे को
  बड़ा होते देखते हैं,
  यहां तक कि जिन्दगी 
  का हर फैसला भी हमने
  एक साथ ही लिया है-


  मेरी कविता अब
  साड़ी पहनने लगी है,
  और तुम्हारी तरह
  सादगी का श्रृंगार भी करने लगी है,
  तुम से बिछुड़ने के बाद
  मेरी तन्हा जिन्दगी के
  खालीपन को
  उसने अपने वज़ूद से
  भरने की कोशिश भी की है,
  लेकिन 
  तुम्हारी यादों के
   ताज़महल ने
   कई बार
   मेरे मनमस्तिषक को
   उलाहना दिया है-


   फिर मेरा अतीत
   चुंम्बक के विपरीत ध्रुवों
   की तरह
   मुझे आलिंगन कर लेता है-
   जब मैं निस्तन्द्र होता हूं
    तो पाता हूं
   यथार्थ के सम ध्रुव
   एक दूसरे को 
    पहचानने से भी इन्कार करते है-
    एक दूसरे का
    मुंह चिढाते हैं-




   यादों की हेयर पिन से
   कुरेदे हुए ज़ख़्मों पर,
   मेरी कविता ही,
   कल्पनाओं के सुखद फाहे
   रखती है,
   प्यार, मुहब्बत के अहसास की
   उंगलियां मेरे बालों में 
   फिराती है
   तब मै और मेरी कविता
    एक दूसरे के साथ ही
    दूसरा जन्म लेने 
    वादा कर
    इस जन्म को 
    विदा कह देते हैं।
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