Sunday, November 14, 2010

मेरे साथ चल


 मेरे साथ चल,
 मैं दिखाता हूं
 मासूम खुली आंखों को
 सपने दिखा कर, 
 छलने वाले,
 मुर्दा घर से 
 लाश चुराने वाले,
 ईमान का जनाजा 
 उठाने वाले,
 आसमां का सौदा कर 
 ज़मीन बेचने वाले-

 नक़ाब पहन कर,
 मेरे इस 
 शहर के, 
 हर गली मोड़ पर
 घात लगाए बैठे हैं,
अपनी पीठ पर,
अपराधों की गठरी लादे,
भोले भालों का
 निशाना साधे-

 मेरे शहर के लोग
 दिल से सोचते हैं
 और 
 दिल से ही,
 जीते है-

 लेकिन, 
 छलने वाले ,
 नक़ाब के भीतर
 अपना चेहरा छुपा कर,
 गर्त के अनंत सागर में
 डूब जाते हैं,
 और 
 मेरे शहर का दिल,
 यूं ही धड़कता रहता है-
 और
 गलियां, मोहल्ले,
 प्रेम, प्यार, मुहब्बत 
 की खुश्बू से महकते 
 रहते हैं.


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