प्रकृति से छेड़छाड़,
स्वार्थ की कुल्हाड़ी से,
परम्पराओं का कटान,
कर्म को त्याग,
धर्म के पीछे दौड़ना,
अपनी चाल में चल रही,
नदियों को मोड़ना,
साफ़ सुथरे पानी में,
अपने जिस्म का कचरा छोड़ना-
अपने पाप के बोझे को,
जिस्म पर लाद कर,
धरती का सीना मरोड़ना,
आपाधापी के बवंडर में
फिर विस्फोट तो होगा ही...
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स्वार्थ की कुल्हाड़ी से,
परम्पराओं का कटान,
कर्म को त्याग,
धर्म के पीछे दौड़ना,
अपनी चाल में चल रही,
नदियों को मोड़ना,
साफ़ सुथरे पानी में,
अपने जिस्म का कचरा छोड़ना-
अपने पाप के बोझे को,
जिस्म पर लाद कर,
धरती का सीना मरोड़ना,
आपाधापी के बवंडर में
फिर विस्फोट तो होगा ही...
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