Wednesday, May 11, 2011

दोहन की आग


कुदरत ने तो बनाया था,
मेरे लिए,
इक हसीन आशियाना,
मग़र स्वार्थ के दानव ने,
इसे दोहन की 
आग के हवाले कर दिया-


स्वार्थ के दिमाग़ से
निकले धुंए से,
आसमां बीमार हो गया,
धरती को रोग़ लग गया-


कुल्हाड़ी उस डाली पर चली,
जिस पर इन्सान बैठा था,
उसी घर को आग लगी,
जिसमें मानव रहता था-


बिना डाली के फूल,
खिलाने की कोशिश,
पतझड़ के बिना,
बहार लाने की तमन्ना,
और बिना पंख,
परिन्दे को 
उड़ाने के प्रयास ने
फुकुशिमा को पैदा किया-

स्वार्थ के खरपतवार को,
यदि नष्ट नहीं किया गया तो,
 पैदा होंगे अनगिनत फुकुशिमा-

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