Wednesday, March 2, 2011

तीन क्षणिकाएं


वर्तमान राजनीति
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एक नग्न मूर्ती
मंच पर चिल्ला रही है
पांडाल में बैठी 
जनता से
फ़रमा रही है
अश्लीलता , नग्नता
के खिलाफ 
पाठ पढा रही है।
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समाजवाद
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टूटी टांग का कुत्ता
एवरेस्ट की ओर
झांक रहा है-

 भंडार भरे हैं
 फिर भी
आम आदमी
धूल फांक रहा है।

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सरकारी बजट
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एक ऎसा मीठा फल
जिसे जनता के हित के लिए
पकाया गया
और उसे
सरकारी कर्मचरी
अधिकारी और
जनप्रतिनिधि
नोच नोच कर
खाते हैं।
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1 comment:

  1. bhayi saab nmste thari kavita koyi koni saari kavitavn khun ra katara hain sadhuwad

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