Friday, March 4, 2011

तुम मेरे अपने हो..


तुम हो 
तुम्हारा मन है
तुम अपने मन को
अपनी सुविधा के मुताबिक
पतंग की तरह
जिधर चाहे मोड़ लेते हो-

लेकिन मैंने तो
अपने आसमान को
तुम्हारी पतंग के लिए
खाली छोड़ दिया है
तुम जब जी चाहे
इसमें अपनी पतंग को
उड़ाओ या समेट लो-

क्यों की मैं तो 
खुला आसमान हूं
और तुम हवा के साथ 
उड़ने वाला बादल
जो मेरी गोद में रह कर
धरती को देता है 
जीवन की धारा-

अतीत की कड़वी यादें
मुझे सूली की सज़ा देती हैं
लेकिन फिर भी
तुम मेरे अपने हो
अपनेपन के अहसास से ही
मैं जिन्दा हूं-

करवट बदलता हूं
इस कदर सम्भल कर कि
तुम्हारे कोमल पन्खों को
खरोंच ना पहुंचे 
भले ही तुम
मेरे आशि्याने को
अपने पैने पंजो से 
ज़ख्मी कर डालो
क्यों कि तुम
मेरे अपने हो। 
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