Saturday, September 3, 2011

मैं अपने घर में अब कैद नहीं


आज कल मै,
अपने घर पर ही रहता हूं
यह मत समझो कि मैं
घर में कैद हूं-

घर के बाहर अब और तब?
मुझे एहसास है,
सुबह की सैर,
सुबह पार्क में, 
सब के साथ मिल बैठ,
ठहाके लगा कर हंसना,
गप्पें लड़ाना और, 
एक दूसरे का दुख सुख बांटना,
दिन भर तरोताज़ा रहना-

लेकिन अब मैं, 
घर में ही रहता हूं
घर के बाहर अब,
मुझे डराते धमकाते हैं,..
भेदभाव के ज़हरीले सांप,
साम्प्रदायिक्ता का प्रदूषण,
और भ्रष्टाचार का भयानक जंगल-

अब मुझे लगने लगा है,
घर के बाहर की हवा से ,
घर के भीतर की हवा में,
सांस लेना ज्यादा मुनासिब है-

घर के भीतर, 
मिलता है मुझे,
भाई चारे का का खाना,
स्नेह की चाय, 
और अपनेपन का दूध,
सौहार्द की ठंडी हवा,
प्यार की मीठी चाश्नी,
और चान्दनी सी रिश्तों ठंडक,
इस लिए अब मैं अपने घर में,
कैद नहीं ,
आजाद हूं--

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