Sunday, February 12, 2012

काश वह परिन्दा होता.


भोला आज फिर
अपने घर की छत पर 
पतंग उड़ा रहा था
उसकी पतंग
नीले आकाश में
परिन्दे की तरह उड़ रही थी
एक दूसरी पतंग से पेंच लड़ा..
प्रतिद्वन्द्वी की पतंग कट गई
भोला के मुख से 
अनायास ही निकला
"वोई काटा हे"
फिर दूसरी पतंग से पेंच लड़ा,
इस बार 
भोला की पतंग कट कर,
आसमान में लहराती हुई
उससे दूर जाने लगी,
भोला एकबारगी जड़ हो गया
दूसरे पल वह घर की छत से नीचे उतरा
गली गली घूमा
अपनी कटी पतंग को ढूंढा
लेकिन जब उसे कहीं भी 
अपनी वह कटी पतंग नहीं मिली
तो वह निराश 
घर लौटते हुए 
सोच रहा था
काश वह परिन्दा होता
और अपनी कटी पतंग को
आसमान से ही ढूंढ लेता
जमीन पर लूटने वाले हाथों में
जाने से पहले
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