Saturday, December 31, 2011

कल की सुबह..


सर्द सुबह,
नई सी लगी, 
मगर चेहरे पे नक़ाब, 
पुरानी सी लगी,
घनी कोहरे की चादर,
पहले से कुछ मैली सी लगी,
शायद वक्त के साथ,
घूमते घूमते,
घिस गई है,
जीवन की रस्सी,
कमजोर होकर,
कमजोर कड़ी की तरह, 
बस टूटने के कगार पर है,
कल की सुबह

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