Saturday, December 4, 2010

एक सवाल

सुकरातो की जुबानबन्दी के लिए,
ताकत वाले,
अपना स्वार्थ सिद्ध करने हेतु,

 क्या सदा              
 जहर के प्याले देते रहेंगे?
 क्या गांधियों की नेकी,
 का बदला,
 गोडसे नाथू राम  
 पैदा कर,
 मानवता के दिल को,
 गोलियों से,
 छलनी करते रहेंगे?


 बहरुपिये,
 क्या अपने स्वार्थ की खातिर,
 सदा ही,
 शतरंज बिछा कर,
 कौरव बन कर
 द्रोपदी का चीरहरण कर,
 उसे भरी सभा में,
 नग्न नचाते रहेंगे?


 ये सभी सवाल,
 आंखों की बैसाखियों पर,
  पंगु मानवता का,
  जिस्म लाद कर,
  धरती पर
  कई लक्ष्मण रेखाएं,
  खींच रहे हैं-


  लेकिन धरती पर 
  खींची रेखाएं
  कमजोर हैं,
  इनमें,
  कोई ताकत नज़र नहीं आती
  कोई चमत्कार नहीं दिखता,
  हर रोज़,
  लक्ष्मण रेखाओं को,
  लांघ कर,
  बनते है,
  नए चक्रव्यूह
  और 
  सुकरातो, गांधी,अभिमन्यु
  होते हैं शहीद-


2 comments:

  1. Prem srdhye,
    Naresh ji Aap ki Kavita Ek sawal bhut hi stik kavita h.yeh sawal mahabhart kal se yu hi kheda h.Aap ki chintta bilkul sehi h.her roj luchman rekha ko langa jatta h.sukrat ,Abhimnuye or Gandi yu hi sehid hote h.Hamre samaj me behrupiyo ka bol-bala h.Aaj k samay anusar Aap ki bhut hi sarthek nezar Aati h.Aap n kavita dawra samaj ko bhut hi payer se cetaya h.ACchhi kavita k liy sadhu-bad.naresh mehan

    ReplyDelete
  2. नरेश मेहन जी के कथनों से मेरी सहमती है। हवा में शब्दों को उछालने की बजाय शब्दों का पैनापन ज्यादा प्रभावी होता है।

    ReplyDelete